21 नवंबर, 2010

ग़ज़ल - - ग़र चाहो तो जवाब दे देना

तुम मिलो तो  सही किसी मोड़ पे, पुराने वो सभी हिसाब ले लेना

बरसती हैं रहमतें, हम  भी अपना आँचल उम्मीद से फैला गए

इक मुद्दत से लिखी हैं बेसुमार ख़त,  ग़र चाहो तो जवाब दे देना /

हर एक लफ्ज़ में छुपे हैं हज़ारों फ़लसफ़ा-ऐ -तिश्नगी ऐ दोस्त

फ़लक है महज इक ख़याल, ज़मीं, सितारे ओ महताब ले लेना/

जिस्त की ओ तमाम मरहले हैं, किसी वीरां अज़ाब की मानिंद

शीशा है टूट जाए तो क्या, इक नया गुलदान-ऐ-ख़्वाब दे देना /

मंदिर की वो तमाम सीढियाँ, वक़्त की नदी निगल सी गई

उम्र गुज़ार दी हमने इबादत में, चलो तुम ही सवाब ले लेना /

परछाइयों से पूछते हैं अक्सर हम अपना ठिकाना दर-ब-दर

मिलो तो सही इक बार, बदले में यूँ ही  ज़िन्दगी नायाब ले लेना /

उठती हैं ज़माने की नज़र हर जानिब, ज़हर बुझे तीरों की तरह

शिकार हों न जाएँ किसी के ज़द में कहीं, दर्द-ऐ-शराब दे देना /

तुम मिलो तो  सही किसी मोड़ पे, पुराने वो सभी हिसाब ले लेना/

 -- शांतनु सान्याल

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