22 मार्च, 2011

कहीं बरसी हैं घटायें, हवाओं में है ताज़गी
ये गीलापन छुपा ले गईं आँखों की नमी
पलकों की वादियों में फिर खिलने लगे हैं
फूल, संवार भी लो बिखरे ज़ुल्फ़ परेशां !
कि ज़िन्दगी का सफ़र अभी है बहुत बाक़ी,
--- शांतनु सान्याल

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