06 अप्रैल, 2023

ग़ज़ल - - इंतज़ार ए शब

झुकी नज़र में, कई इंतज़ार ए शब गुज़र गए,
टूटते तारों का पता तलाश करता रहा दिल,
फिज़ाएं, चाँद, ख़ुश्बू सभी अपने अपने घर गए,
ख़लाओं में गूंजती रही वो अँधेरे की सदाएँ,
शबनम, जुगनू, फूल, यूँ सीने में दर्द भर गए,
वो ख्वाहीश जो भटकती है, बियाबानों में
आ के सीने के बहोत क़रीब, ख़ामोश ठहर गए,
नाख़ुदा पुकारता रहा किनारों को बार बार
साहिल यूँ टूटा, ख़्वाबों की ज़मीं दूर बिखर गए,
ज़िंदगी इक मुद्दत के बाद मुस्करायी ज़रूर,
आये भी नज़र ज़रा,फिर न जाने वो किधर गए,
उस शबिस्तां में सुना है उतरतीं हैं कहकशां,
डूबने से क़ब्ल कश्ती, वो अहबाब सभी उतर गए,
सायादार दरख्तों में गुल खिले वक्ते मामूल,
हश्बे खिज़ां लेकिन रिश्तों के पत्ते सभी झर गए,

- - शांतनु सान्याल

अर्थ :   
  इंतज़ार ए शब - रात का इंतज़ार
  नाख़ुदा - मल्लाह
  कहकशां - आकाशगंगा  
   क़ब्ल - पहले
अहबाब - दोस्त
  वक्ते मामूल - सही समय
हश्बे  खिज़ां - पतझर के अनुसार
शबिस्तां - शयन कक्ष

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