26 जुलाई, 2012


आसान नहीं सफ़र 

कोहरे के बाद भी थी, लम्बी सी इक रहगुज़र -
 न देख पाए हम बस लौट आए यूँही ख़ाली हाथ,
  
कल तक तो थे वो सभी, ज़िन्दगी के आसपास 
महकते दायरे में घूमते, आज नहीं है कोई साथ,

वक़्त का अपना ही है हिसाब, कोई ग़लती नहीं -
घने अब्र छाये तो क्या, ज़रूरी नहीं हो बरसात,

असूल ओ फ़िक्र जो भी हों, मंज़िल जुदा कहाँ !
वही रास्ते, मोड़ घुमावदार आसां नहीं निजात,

- शांतनु सान्याल  
silent street


  





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