26 सितंबर, 2012

तराज़ू नादीद - -

गुमसुम सा है अक्स मेरा आजकल ! या 
बाज़गश्त सदाओं से है खौफ़ज़दा, 
इक तराज़ू नादीद, निगाहों 
के आगे डोलता है 
रात दिन 
लिए 
सीने में कोई सवाल अलामत ! दफ़न -
फ़ैसला गोया होने को है, मंज़र -
आम, गुनाह ओ सवाब के 
दरमियाँ झूलती है 
ज़िन्दगी, उस 
नक्श
पोशीदा से किनाराकशी नहीं आसां, किस 
चिलमन से निकल आएगी तीर ए
आतिश, बेहतर ख़ुदा जाने !
उस मुहोब्बत का राज़
है लामहदूद गहरा,
उम्र गुज़र 
जाए 
डूब के उभरने में - - 

- शांतनु सान्याल
  http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
नादीद - अदृश्य
बाज़गश्त - लौटती
अलामत - प्रतीक
सवाब - पुण्य
लामहदूद - अंतहीन 
 Painting byTerry Wylde

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