02 मई, 2023

नाख़ुदा कोई नहीं - -

उठे फिर कहीं से सघन बादलों के गरदाब,
ज़िन्दगी चाहती है फिर ऐ तक़दीर
तुझे आज़माना, न रख
मुझे अपने दायरे
में बाँध कर,
चाहता है ज़मीर मेरा, ख़ुद से निकल कर,
तूफ़ान को बहोत क़रीब से पहचानना,
नाख़ुदा न कोई, न ही साहिल
मेहरबां, ज़िन्दगी फिर
भी चाहती है हर
हाल में
मंजिल ए मक़सूद तक पहुंचना, ज़माने -
की अपनी हैं शर्ते, अपनी ही
मजबूरियां, रहने भी
दे, ऐ आसमां
रहनुमाई,
दिल की रौशनी है अभी बाक़ी, है अभी
अधूरा सफ़र तीरगी का, है अभी
बाक़ी, ऐ हमनफ़स तुझे
मुक्कमल तौर से
अपनाना !

* * 
- शांतनु सान्याल 
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
नाख़ुदा - माझी
गरदाब - भंवर 
alone boat -ART by ROB FRANCO 




3 टिप्‍पणियां:

  1. दहरे- दौरे- दामन में मुझको छुपा रखना..,
    ये रु ये रौ ये रौशनी दिल में जलाय रखना..,
    जिंदगी रोजे-क़याम है फुर्सत में हिसाबना..,
    सबा के सब्जपा से मुझको बचाए रखना.....

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  2. शानदार नज़्म।

    यह सजा के लिखने में
    पढ़ने वाले को दिक्कत होती है
    भाव पकड़ने में।

    जवाब देंहटाएं

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