29 जनवरी, 2013

इक अदद चेहरा - -

मुखौटों की भीड़, और    इक अदद ख़ालिस चेहरे 
की तलाश, बहोत मुश्किल है बहरान 
दरिया की सतह पर, अक्स 
नाख़ुदा का उभरना !
हर एक मोड़ 
पे हैं भरम जाल, कौन है ख़ून इशाम और कौन 
मसीहा, फ़र्क़ नहीं आसां, कि हर नुक्कड़ 
की दीवार पर लिखे हैं, ग़ैर वाज़ी 
फ़लसफ़े के लुभावने 
इश्तहार !
हर शख्स दिखाता है यहाँ आसमानी बाग़, हर 
क़दम पे हैं शिफ़र की सीड़ियाँ, तै करना 
है ख़ुद को बहोत सोच समझ कर,
ये वजूद नहीं कोई 
नीलामी का 
मज़मून,
कि अब तलक ज़िन्दा है इक अदद  ज़मीर मेरा,
* * 
- शांतनु सान्याल 
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
ख़ालिस - शुद्ध 
बहरान दरिया - आंदोलित नदी 
नाखुदा - मल्लाह 
ख़ून इशाम - रक्त पिशाच 
मज़मून - नमूना 
ग़ैर वाज़ी - अस्पष्ट 
शिफ़र - शून्य 
Desert Bloom - no idea about painter 

6 टिप्‍पणियां:

  1. यहाँ हर इक रु-पोश-ओ-खम खारो-खराशो में..,
    हर सूरते-रूह धुआँ हो के धुँधलाई है..,
    सतहे-आब ने भी पहने चेहरे..,
    तू गाफ़िल हो के कहे..,
    शनासाई है ये..,
    दरिया..,
    तहे-नशीं हो के ज़रा तहक़ीक़ात तो कर..,
    तहे-तहरीर में बंद तारिक ही तो है..,
    इसकी पेशे पे जो रंग चढ़ा है..,
    ये अक्से-जंगारी फ़कत..,
    धोखे के सिवा नहीं..,
    कुछ भी..,
    गुलों हसरत के राग भी आसमाँ में नहीं होते..,
    धनक भी कैद है गर्दो-गुबारों में.....

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  2. सह बात कही है आपने.
    बहुत ही बेहतरीन रचना..
    शानदार...
    :-)

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  3. मुखौटों की भीड़, और इक अदद ख़ालिस चेहरे
    की तलाश, बहोत मुश्किल है बहरान
    दरिया की सतह पर, अक्स
    नाख़ुदा का उभरना !

    ....बहुत खूब! सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...

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  4. कि अब तलक ज़िन्दा है इक अदद ज़मीर मेरा..बहुत खूब

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  5. असंख्य धन्यवाद - प्रिय मित्रों - नमन सह

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