02 अक्तूबर, 2013

ज़िन्दगी का सफ़र - -

हर एक लम्हा अपनी जगह रखता है 
अहमियत, इक ख़्वाब ही तो 
है टूटा, निगाहों में 
उम्मीद तो 
बाक़ी 
है, बिखरे हैं जाम के टुकड़े फ़र्श पर -
बेतरतीब, तो क्या, मेरे पहलू 
में वजूद ए साक़ी है, न 
देख यूँ  मुड़ मुड़ 
के दर ए 
आसमां से, उजालों के लिए ज़मीर -
मेरा काफ़ी है, तेरा जाना 
बेशक है इक कमी, 
लेकिन, अभी 
तलक 
वादियों में बहार आना बाक़ी है, कैसे 
कहूँ ख़ुदा हाफ़िज़, ज़िन्दगी 
का सफ़र अभी तो 
बहोत बाक़ी 
है - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
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