20 अक्तूबर, 2013

जिस्म ओ रूह चाहे राहत ज़रा - -

मालूम है मुझको शीशे की मजबूरी 
फिर भी दिल चाहे ख़्वाबों से 
खेलना, न छीनो मुझसे -
ये खिलौना, बहोत 
मुख़्तसर है - 
रात की ज़िन्दगानी, न दोहराओ -- -
वही रंज ओ ग़म की बातें, 
नई पुरानी दर्द भरी 
अलहदगी, 
जंग आलूद धुंधली मुलाक़ातें, अब -
इन बातों से ऊबती है ज़िंदगी,
कुछ नयापन चाहे दिल 
मेरा, जिसमें हो 
इक मुश्त 
ताज़गी, इक अहसास ए ख़ुशबू -- -
जो कर जाए तिलिस्म गहरा, 
कि जिस्म ओ रूह 
चाहे राहत 
ज़रा - -
* * 
- शांतनु सान्याल 
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by Melanie Pruitt 1

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