11 मार्च, 2014

ख़ूबसूरत फ़रेब - -

वो कोई ख़ूबसूरत फ़रेब था, जिसने 
मुझे ख़ुद से तारुफ़ कराया, वो 
कोई आईना था, शायद 
जिसने वजूद को 
सोते से है -
जगाया,
रहनुमाओं के भीड़ में थी लापता - - 
कहीं मेरी मंज़िल, मुमकिन 
है, वो कोई बिखरता 
ख्वाब ही था 
जिसने,
बिखरने से पहले  है मुझे बचाया, न 
देख फिर मुझे, यूँ हैरत भरी 
निगाह से, मैं नहीं 
कोई धनक 
रंगीन,
कि उभर के गुमशुदा हो जाऊंगा - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 


http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by giti ala

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