09 मई, 2014

ज़रूरत से ज़ियादा - -

ख़ूबसूरत ये ज़मीं, उन्मुक्त आस्मां,
हर तरफ़ क़ुदरत की जादूगरी,
पहाड़ों से गिरते झरने,
फ़िज़ाओं में हैं 
फूलों सी 
ताज़गी, हर तरफ़ जश्न ए जिंदगी,
न मोड़ अपनी नज़र ज़रा सी 
कमी पर, हर इक रूह 
प्यासी, हर सांस 
को चाहिए
यहाँ उभरने की आज़ादी, दरअसल 
उम्र से कहीं लम्बी होती हैं 
ये ख़्वाहिशों की 
फ़ेहरिस्त,
और दिल बेचारा हो जाता है दम ब 
दम मजनून ए सहरा !
भटकता है रात 
ओ दिन 
ज़रूरत से ज़ियादा पाने की चाह में,
जबकि सब कुछ रहती है 
अपनी जगह उसी 
के सामने,

* * 
-  शांतनु सान्याल 


http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
wash painting

4 टिप्‍पणियां:



  1. ☆★☆★☆



    ख़ूबसूरत ये ज़मीं, उन्मुक्त आस्मां,
    हर तरफ़ क़ुदरत की जादूगरी,
    पहाड़ों से गिरते झरने,
    फ़िज़ाओं में हैं
    फूलों सी
    ताज़गी, हर तरफ़ जश्न ए ज़िंदगी,

    वाह ! वाऽह…!

    बहुत ख़ूबसूरत दृश्य चित्रित किया है आपने
    आदरणीय शांतनु सान्याल जी
    हृदय से साधुवाद !


    मंगलकामनाओं सहित...
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  2. असंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह

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  3. देने वाले ने तो खूब दिया कायनात में रंग भर भर के , ख्वाहिशें बढती गयी ज्यो ज्यों पूरी हुई !!

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  4. असंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह

    जवाब देंहटाएं

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