15 जुलाई, 2014

अब जा के बरसे हैं बादल - -

अब जा के बरसे हैं बादल, जब अंकुरित -
खेत मुरझा गए, वो तमाम मातबर,
रौशन फ़िक्र, राज़ ए मौसम
जान न पाए, कभी
देखा आसमां
की ओर,
कभी ज़मीं पे खींचीं अनबूझ लकीरें, ज़रा
सी बात को लफ़्ज़ों में उलझा गए,
पीर दरवेश साधु संत, न
जाने कितने रूह
मजनून,
लेकिन नबूत हक़ीक़ी दिखा न पाए, आए
ज़रूर मंज़र ए आम, देखा इक नज़र
और मुस्कुरा गए, दरअसल
ये तमाम ख़शुनत ओ
वहशीपन है
सिर्फ़
जूनून आरज़ी, किसने देखा है ख़ूबसूरत -
सिफ़र को, अपने पराए जो भी आए
बेवजह दिल ओ दिमाग़ बहका
गए, अब जा के बरसे हैं
बादल, जब अंकुरित
खेत मुरझा
गए.

* *
- शांतनु सान्याल

Joe Cartwright's Watercolor Blog
 http://sanyalsduniya2.blogspot.in/
 मातबर - जवाबदार 
नबूत हक़ीक़ी- सत्य  भविष्यवाणी
ख़शुनत - हिंसा 
 
आरज़ी - अस्थायी 

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