11 जुलाई, 2015

फिर मिले न मिले - -

फिर खुले न खुले, दर
ए ज़िन्दां किसे
ख़बर, अभी
तो भीग
लें इन बारिशों में खुल
कर, न रोक ख़ुद को
यूँ चहार दिवारी
के अंदर।
मवाली हवाओं के संग
उड़ जाएं सभी
हिजाब,
दिल चाहे होना आज
गहराइयों तक
तर बतर।
इल्ज़ाम
कोई, ग़ैर इख़्लाक़ी - -
का लगे तो लगे,
अभी तो जीलें
खुली
हवाओं में यूँ ही बेख़बर।
फिर मिले न मिले,
ज़िन्दगी को
ये नायाब
पल,
क्यों न रोक लें इन्हें - -
अपनी निगाहों में
ऐ मेरे हम -
सफ़र।

* *
- शांतनु सान्याल

 
http://sanyalsduniya2.blogspot.in/

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