06 सितंबर, 2015

निगाहे नूर - -

मेरी चाहतों को काश
एक मुश्त सुबह
की धूप
मिलती, यक़ीन मानो
मेरी ज़िन्दगी भी
फूलों से कम
न होती।
ताहम कोई शिकायत
नहीं इस कमतर
रौशनी के लिए,
इक ज़रा
निगाहे
नूर तेरी काफ़ी है मेरी
ज़िन्दगी के लिए।
* *
- शांतनु सान्याल
 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past