30 जुलाई, 2016

सिफ़र से ज़ियादा - -

इस मोड़ से आगे है सिर्फ़ अंतहीन ख़ामोशी,
और दूर तक बिखरे हुए सूखे पत्तों के
ढेर, फिर भी कहीं न कहीं तू
आज भी है शामिल इस
तन्हाइयों के सफ़र
में। इक बूंद
जो कभी
तेरी आँखों से टूट कर गिरा था मेरे सुलगते
सीने पर, यक़ीन जानो, उस पल से
आज तक आतिशफिशाँ से कुछ
कम नहीं मेरी ज़िन्दगी।
ये सही है कि  हर
इक ख्वाब का
इख़्तताम
है मुक़र्रर, फिर भी मेरी निगाहों को है सिर्फ़
तेरी दीदार ए आरज़ू। ये और बात है कि
पल भर में दुनिया ही बदल जाए,
होंठ तक पहुँचते ही कहीं
इज़हार ए जाम न
छलक जाए।
फिर भी
उम्मीद से ही है आबाद, चाँद सितारों की - -
दुनिया, वरना ये आसमान इक
सिफ़र से ज़ियादा कुछ भी
नहीं।

* *
- शांतनु सान्याल

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past